Bhasha Kise Kahate Hain | परिभाषा, भेद और उदारहण

bhasha kise kahate hain
bhasha kise kahate hain: किसी भी संस्कृति के महत्वपूर्ण घटकों में से एक होती है भाषा। जिसका ज्ञान सभी को बचपन से ही अपने घर परिवार से होने लगता है। इसके साथ ही जैसे ही बच्चे बड़े होते हैं उनकी शिक्षा शिक्षण संस्थानों के माध्यम से कराई जाती है, जहाँ उन्हें भाषा से संबंधी ज्ञान प्रदान किया जाता है। यहाँ विस्तृत रूप से भाषा और उसके अन्य भेदों को समझने का अवसर मिलता है। साथ ही भाषा के महत्व और उसके सही प्रयोग का ज्ञान भी होता है। आज इस लेख में आप भाषा किसे कहते हैं? इसके के कितने रूप होते हैं एवं इसका महत्व क्या है ? आदि से संबंधी जानकारियां प्राप्त करेंगे, जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।

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Bhasha Kise Kahate Hain?

भाषा एक ऐसा साधन या माध्यम है जिससे मानव एक दुसरे को अपने मनोभावों से परिचित करा सकते हैं और साथ ही उनकी मनोदशा को भी समझ सकते हैं। भाषा व्यक्ति को अपने विचार और और भावनाओं को अन्य व्यक्ति को समझाने और उन तक पहुंचाने का कार्य करती है।

भाषा का प्रयोग मानव ध्वनि संकेतों के साथ किया जाता है अर्थात अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए ध्वनियों और वाक्यों के समूहों का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतः मानव द्वारा इस्तेमाल होने वाली विचार को आदान प्रदान की प्रक्रिया को ही भाषा कहते हैं।

भाषा की परिभाषा (भाषा किसे कहते हैं?)

यहाँ जानिए कुछ दार्शनिक, विशेषज्ञों और विद्वानों ने भाषा की क्या परिभाषा दी है –

आचार्य देवनार्थ शर्मा के अनुसार – जब मनुष्य उच्चारण के लिए ध्वनि संकेतों की मदद से परस्पर विचार-विनिमय  में करते हैं तो उस संकेत प्रणाली को भाषा कहा जाता है। 

विद्वान डॉ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार, “भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और एक ऐसी शक्ति है, जो मनुष्य के विचारों, अनुभवों और संदर्भों को व्यक्त करती है। साथ ही उन्होंने बताया कि – जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनकी समष्टि को ही भाषा कहा जाता है।”

प्लेटो के अनुसार विचार और भाषा के संबंध में : विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर है। विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है और वही शब्द जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।

विद्वान डॉ. श्याम सुन्दर दास के अनुसार, “मनुष्य और मनुष्य के मध्य वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहा जाता है।

विद्वान मंगल देव शास्त्री के अनुसार, “भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा अथवा व्यापार को कहा जाता है, जिससे मनुष्य अपने उच्चारणपयोगी शरीर के अवयवों से वर्णात्मक अथवा व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को व्यक्त करता है।”

विद्वान डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित मूलतः यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं।”

 ब्लाक तथा ट्रेगर के अनुसार – भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तन्त्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता है।

भाषा का महत्व

भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से मनुष्यों द्वारा ही किया जाता है। ये एक संचार प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ही मानव एक दुसरे तक अपने विचार, भावनाएं आदि पहुंचाते हैं। इंसान न केवल वर्तमान और भूतकाल की बल्कि भविष्य के संबंध में भी भाषा के माध्यम से सम्प्रेषण कर सकते हैं।

इसलिए भाषा का उपयोग विशेषकर मनुष्यों के लिए ही अधिक सार्थक है. जबकि पशु इसका इस्तेमाल सिर्फ वर्तमान की घटना और अपनी आवश्यकता की पूर्ती हेतु ही करते हैं।

भाषा के माध्यम से ही समुदाय की परंपरा और उसकी संस्कृति की निरंतरता बनाये रखने के साधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसी के जरिये हम वर्तमान में अपने पूर्वजों की दिनचर्या और अनुभवों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। इसी के आधार पर हम अपने जीवनस्तर और सोच को पहले से बेहतर बनाते हैं। बहुत कुछ उनके अनुभवों से सीखते हैं आदि।

भाषा का प्रयोग करके हम किसी भी समस्या का समाधान मिलकर ढून्ढ सकते हैं। नई नई खोज कर सकते हैं और जीवन को आसान और सुविधाजनक बना सकते हैं। इन सभी के लिए आवश्यक है कि हम एक दुसरे की सोच और विचारों को समझे और मिलकर आगे बढ़ें।

भाषा किसी भी सभ्यता का निर्माण और विनाश करने की ताकत रखती है। आप की भाषा और उसके बेहतर इस्तेमाल से आप विकास कर सकते हैं।

भाषा के भेद

भाषा के तीन भेद होते हैं, जिस के माध्यम से हम अपने विचार और भावनाएं एक दुसरे तक पहुंचाते हैं। आइये जानते हैं विस्तार से –

  1. मौखिक भाषा
  2. लिखित भाषा
  3. सांकेतिक भाषा

(1) – मौखिक भाषा :

मौखिक भाषा अर्थात जब हम मौखिक रूप से किसी व्यक्ति तक अपने विचार पहुंचाते हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब हम अपने मनोभाव और विचारों को बोलकर सामने वाले व्यक्ति को इससे अवगत कराते हैं।

उदाहरण के तौर पर आप विद्यालय में अपने क्लासरूम को ले लीजिये जहाँ आप के अध्यापक बोलकर किसी विषय के बारे में बताते हैं या समझाते हैं। इसी प्रकार एक रेडियो जॉकी (आरजे) रेडियो के माध्यम से बोलकर अपनी आवाज़ के माधयम से लाखों की संख्या में लोगों तक अपनी बात पहुंचाता है।

इसी प्रकार जब आप बोलकर अपने परिवार या दोस्तों से बात करते हैं। जब रेडियो, टीवी, मोबाइल आदि का उपयोग करके भी आप मौखिक भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।

जानिए मौखिक भाषा की विशेषताएं :

मौखिक भाषा का प्रयोग तब ही हो सकता है जब बोलने वाला व्यक्ति और सुनने वाला व्यक्ति दोनों ही उपस्थित हों।

मौखिक भाषा उच्चारण के साथ साथ ही समाप्त हो जाती है।

ये भाषा का एक अस्थायी रूप है।

मौखिक भाषा का प्रयोग बिना ध्वनि के नहीं किया जा सकता है। ध्वनि मौखिक भाषा की महत्वपूर्ण इकाई है जिनके मिलने से ही शब्द की उत्पत्ति होती है और शब्दों से मिलकर बनते हैं वाक्य। और इन्ही वाक्यों के माधयम से हम वार्तालाप की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं।

(2) लिखित भाषा :

जब भी कोई अपने मनोभावों और विचारों को दुसरे व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए लिखित भाषा का इस्तेमाल करता है तो उसे लिखित भाषा कहते हैं। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति अपने विचार और भावनाओं को किसी पत्र के माध्यम से अन्य व्यक्ति तक पहुंचता है।

तो इसे लिखित भाषा का सम्प्रेषण कहेंगे। इस प्रकार के सम्प्रेषण में लिखने वाला और पढ़ने वाला दोनों का होना आवश्यक है। तभी ये प्रक्रिया पूरी होगी।

जानिये लिखित भाषा की विशेषताएं :

लिखित भाषा, भाषा का एक स्थाई प्रकार है। क्यूंकि इसमें लिखे जाने वाले विचार लम्बे समय तक सुरक्षित रहते हैं।

इसे आप कभी भी पढ़ सकते हैं या बार बार भी पढ़ सकते हैं।

लिखित भाषा का सबसे बड़ा लाभ ये है कि इसमें एक ही समय में लिखने वाले और पढ़ने वाले का आमने सामने होना आवश्यक नहीं होता है। सिमें लिखने वाला और पढ़ने वाला किसी भी समय अपने विचार लिख सकता है और दोसरा उसे अपने अनुसार किसी भी समय पर पढ़ सकता है।

लिखित भाषा की आधारभूत इकाई वर्ण होती है जो उच्चारण की गई ध्वनियों के प्रतीक रूप में कार्य करता है।

(3) सांकेतिक भाषा (Sanketik bhasha) :

सांकेतिक भाषा जैसे कि हम शब्द से ही समझ कि इसमें संकेत के माध्यम से ही या इशारों के जरिये किसी को अपनी बात समझायी जाए। इसे ही सांकेतिक भाषा कहते हैं।

जैसे कि – यदि किसी व्यक्ति को दूर से किसी को आने के लिए कहना है तो वो इसके लिए अपने हाथों को हिलाकर उसे अपनी तरफ आने को कह सकता है। अर्थात संकेतों का प्रयोग करके उसे अपनी बात समझा सकता है। यहाँ भी सम्प्रेषण की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

सांकेतिक भाषा की विशेषताएं :

जिस प्रकार हमे लिखित और मौखिक भाषा के उपयोग को व्याकरण में समझाया जाता है उस प्रकार सांकेतिक भाषा को व्याकरण में नहीं पढ़ाया जाता। 

सांकेतिक भाषा के लिए भी ये आवश्यक है कि समझने और समझाने वाले का आमने सामने हों।

भाषा से संबंधित प्रश्न उत्तर

भाषा किसे कहते हैं ?

भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि – जिसके माध्यम से हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। इसे हम शैली भी कह सकते हैं।

भाषा किसे कहते हैं और इसके कितने भेद होते हैं?

भाषा एक साधन है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति तक बोलकर, लिखकर, पढ़कर या इशारों से अपने मनोभावों को प्रकट करता है। भाषा के तीन भेद होते हैं- 1. मौखिक भाषा 2. लिखित भाषा 3. सांकेतिक भाषा 

भाषा क्या है और इसका महत्व क्या है?

भाषा किसी भी संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक होती है। भाषा के माध्यम से लोग एक दूसरे के साथ संपर्क और संवाद करते हैं और समुदाय की भावना पैदा करते हैं। वर्तमान में दुनिया में लगभग 6,500 बोली जाने वाली भाषाएँ हैं, और इनमे से हर भाषा अपने आप में अलग और विशेष है।

भाषा का उद्देश्य क्या है?

भाषा का उद्देश्य मनुष्यों के बीच अपने विचारों का आदान प्रदान करना और एक दुसरे के मनोभावों को समझना है। भाषा इसके लिए एक माध्यम का कार्य करती है।

भाषा की सबसे छोटी इकाई को क्या कहते हैं?

भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण और ध्वनि कहलाती है। जबकि भाषा की सबसे बड़ी इकाई वाक्य है।

The term "bhasha" refers to a language in several South Asian languages, including Hindi and Sanskrit. It is commonly used to denote a specific language or dialect.

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